जयपुर 27 जनवरी। विद्याधर
नगर स्थित बियानी ग्रुप ऑफ कॉलेजेज के उत्सव सभागार में स्वर्णकार समाज उत्थान समिति
और बियानी ग्रुप ऑफ कॉलेजेज के संयुक्त तत्वाधान में रविवार को आचार्य चतुरसेन शास्त्री स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया कार्यक्रम
में प्रसिद्ध लेखक, चिकित्सक, वास्तु शास्त्री और साहित्यकार आचार्य चतुरसेन
शास्त्री के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में चर्चा की गई। ''करे कोई
तरकीब ऐसी कि सब संभलते रहें, हवाएं भी चलती रहें और दिए भी जलते रहे'', कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजस्थान
हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के निदेशक डॉ
रामधारी सैनी ने कुछ इन्ही पंक्तियों के साथ अपनी बात के शुरूआत करते हुए कहा कि आचार्य चतुरसेन शास्त्री का लेखन
के क्षेत्र में योगदान अतुलनीय है, उन्होंने कहा कि एक अच्छे
लेखक की रचनाएं किसी सम्मान और पुरस्कार की मोहताज नहीं होती, पाठकों के बीच उनकी प्रसिद्धि और इतिहास के पन्नों में उनका नाम ही उन्हें
महान् और अमर बना देता है। जिस तरह से कबीर और मीरा को आज तक किसी पुरस्कार या सम्मान
से नहीं नवाजा गया, लेकिन फिर भी उनकी रचनाएं लोगों की जुबान
पर अमिट रूप से अंकित हो गई हैं, ठीक उसी तरह आचार्य चतुरसेन शास्त्री भी लोगों
के दिलों में जगह बना कर अमर हो गए हैं।
कार्यक्रम
के मुख्य वक्ता गुरु गोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में फैकल्टी ऑफ बेसिक एण्ड एप्लाइड सांइसेस, के डीन प्रो वी क़े वर्मा ने आचार्य चतुरसेन शास्त्री के पारिवारिक और
सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि
इनका जन्म 26 अगस्त, 1891 को बिबियाना,
चान्दोल ग्राम के पास, बुलन्द शहर,
उत्तरप्रदेश में हुआ था। इनके जन्म का नाम चतुर्भुज था। इनके दादा
मनसुख बाबा तथा पिता केवलराम जी थे। गाँव में इनकी सर्राफे की दुकान थी। 1901
में आर्य समाज के पण्डितों द्वारा इनका यज्ञोपवीत संस्कार करवाया
गया। 1907 से 1911 तक इनका जयपुर
प्रवास रहा। 1915 में जयपुर के संस्कृत महाविद्यालय से इन्होंने
संस्कृत शास्त्री एवं आयुर्वेद की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं। बचपन से ही समाज सेवा की
भावना के चलते इन्होंने अपने मित्रों के साथ मिलकर एक प्रीति मण्डल बनाया। जिसकी शुरूआत
इन्होंने इन शब्दों के साथ की :-
आइये
मिल बैठकर, एक सभा कायम कीजिए।
नाम उसका
प्रीतिमण्डल, बस अभी रख दीजिए।
यह उन्नति
सोपान, जो दुघर्ष है भारी यहाँ।
हम सबों
को जोश में, हस्तामलक सा दीखता।
आचार्य
जी प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य भी थे। अजमेर में इनके श्वसुर का ''कल्याण औषधालय'' के नाम से औषधालय चलता था जिसमें
कुछ समय आचार्य जी ने कार्य भी किया। 1919 में भाई भद्रसेन
व पत्नी के साथ वीटी स्टेशन पहुंचे व कालवादेवी रोड़ पर ''अजमेर
वाले वैद्यराज'' के नाम से औषधालय शुरू किया। इनके द्वारा
लिखित ग्रन्थ ''सत्याग्रह और असहयोग'' को गणेश शंकर विद्यार्थी ने ''राजनीति की गीता''
कहा। इनके द्वारा लिखे गए प्रमुख ग्रन्थों में वैशाली की नगर वधु,
वयम् रक्षामं:, गोली, धर्मपुत्र, सोना और खून, सोमनाथ, निरोग जीवन, यादों
की परछाईयां आदि हैं। आचार्य जी द्वारा अपनी आत्मकथा ''मेरी
जीवन कहानी'' भी लिखी गई है। प्रो वी क़े वर्मा ने बड़े दु:ख के साथ कहा कि आचार्य चतुरसेन जी का योगदान
साहित्य और आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में अतुलनीय है, किन्तु इन्हें आज के दौर में अहंकारी लेखक कहकर नकारा जाता है, लेकिन वास्तव में वह अहंकारी नहीं बल्कि स्वाभिमानी लेखक थे।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि बियानी ग्रुप ऑफ
कॉलेजेज के चेयरमैन डॉ राजीव बियानी ने कहा कि आचार्य चतुरसेन शास्त्री का सम्पूर्ण जीवन एक चिन्तन और मनन का
विषय है, लोगों के लिए आर्दश है। उन्होंने कहा कि आचार्य चतुरसेन शास्त्री के व्यक्तित्व की सबसे बडी विशेषता यह कि उनमें देने की इच्छा
थी, लेने
की ललक नहीं थी। उनका यही व्यक्तित्व हम सभी के मनो में आज भी हम जीवित है,
बस जरूरत है, उसे पहचान कर निखारने की।
इस अवसर
पर उत्तर प्रदेश से विशेष आमंत्रित अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ चन्द्रशेखर शास्त्री ने भी अपने विचार व्यक्त किए। आपने अपने उद्गार में आचार्य
चतुरसेन शास्त्री के जीवन से संबंधित कुछ अनछुए पहलुओं पर चर्चा की। आपने बताया कि
आचार्य चतुरसेन जी के परिवार से आपका अभी भी निरन्तर सम्पर्क है और आपने आचार्य जी
के दिल्ली स्थित निवास की सुन्दरता एवं वैभव का बखान करते हुए बताया कि आचार्य जी एक
बहुत अच्छे शिल्पी भी थे। इन्होंने अपने हाथों से अपने निवास को सजाया है और इसकी सुन्दरता
देखते ही बनती है। आपने बहुत ही गंभीर स्वर में कहा कि यदि आचार्य जी के द्वारा लिखित
साहित्य को नहीं सहेजा गया तो इतिहास के लिए एक बहुत बडी हानि होगी। ये स्वर्णकार समाज
का दायित्व है कि वे आचार्य जी के वर्तमान में उपलब्ध साहित्य के संरक्षण के लिये पहल
करे। आपने बताया कि आचार्य जी का वर्तमान में जो साहित्य उपलब्ध है, उसे लगभग 24 पुस्तकों में श्रृंखलाबद्ध तरीके से
सुरक्षित किया जा सकता है जिसपर औसतन 22 से 24 लाख रुपये का खर्च होने का अनुमान है। यदि समाज के भामाशाह आगे आयें तो
आचार्य जी की दुर्लभ कृतियों को भविष्य हेतु सुरक्षित किया जा सकता है। आपने इस बात
पर भी बल दिया कि देश का स्वर्णकार समाज प्रयास करे और आचार्य चतुरसेन शास्त्री को
'भारत रत्न' से अलंकृत किए जाने हेतु
सरकार को लिखे।
कार्यक्रम
का सर्वाधिक सुखद पहलु ये रहा है कि डॉ चन्द्रशेखर शास्त्री के आग्रह पर आचार्य चतुरसेन
शास्त्री की दोहिती कु क़ानन चतुरसेन भी कार्यक्रम में उपस्थित हुई।
इस अवसर पर राजस्थान
विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डा सुधीर सोनी
ने कहा कि संघर्ष ही इंसान के व्यक्तित्व को निखारता है, जिस प्रकार सोने को तपाकर उसे और अधिक मूल्यवान और सुन्दर बनाया जाता हैं,
उसी प्रकार संघर्षो का सामना करते करते इंसान एक सफल व्यक्तित्व के
रूप में सामने आता है। मुश्किलें जितनी
अधिक होती है, जीत का मजा उतना ही अधिक आता है, आचार्य शास्त्री के जीवन में भी संघर्ष बहुत थे, और उन सभी का सामना कर वह सफल व्यक्तित्व के रूप में पूरी दुनिया के सामने
आए। डॉ सोनी ने आचार्य जी के द्वारा लिखित प्रमुख ग्रन्थों एवं उपन्यासों पर साहित्यिक
रूप से प्रकाश डाला तथा उनके साहित्यिक वैभव से समाज बंधुओं का परिचय करवाया।
इसी के
साथ कार्यक्रम के अध्यक्ष बृज भाषा अकादमी के पूर्व सचिव श्रीमान नाथूलाल महावर ने
कार्यक्रम को अपनी आशु कविता के माध्यम से सार के रूप में प्रस्तुत किया और वातावरण
को आनन्दमय बना दिया।
कार्यक्रम
का प्रारम्भ सभी अतिथि महानुभावों द्वारा माँ सरस्वती, भगवान श्री गणेश और महाराजा अजमीढ़ के समक्ष द्वीप प्रज्जवलित कर किया गया।
इसके पश्चात् अतिथियों का तिलक द्वारा स्वागत संस्था के सदस्य विमलेश सोनकी सुपुत्री
कु क़शिश सोनी द्वारा किया गया। कार्यक्रम में अतिथियों का परिचय संस्था के संयुक्त
सचिव एवं कार्यक्रम संयोजक उमेश कुमार सोनी द्वारा करवाया गया। इसी क्रम में संस्था
का परिचय सदस्य संदीप सोनी तथा इसके उद्देश्य
पर कैलाशचंद सारडीवाल द्वारा प्रकाश डाला गया। कार्यक्रम के अंत में स्वर्णकार समाज
उत्थान समिति के अध्यक्ष गजेन्द्र सोनी ने आए हुए समस्त अतिथियों और स्वर्णकार समाज
उत्थान समिति की टीम की ओर से किए गए सहयोग
के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। इसके पश्चात् अतिथियों को स्मृति चिह्न के रूप में साहित्य
भेंट किया गया जिसके अन्तर्गत मुख्य अतिथि डॉ रामधारी सैनी को साहित्य गौ सेवा आयोग
के पूर्व अध्यक्ष श्रीमान् गुलजारी लाल सोनी द्वारा, अध्यक्ष श्रीमान्
नाथूलाल महावर को श्रीमान् चन्द्रप्रकाश अग्रोया द्वारा, विशिष्ट
अतिथि डॉ राजवी बियानी को सैल्स टैक्स में अतिरिक्त आयुक्त एवं हाल ही में आईएएस अधिकारी
के रूप में पदोन्नत श्रीमान् एलएनसोनी द्वारा, मुख्य वक्ता
प्रो वीक़ेवर्मा को ज्वैलरी व्यवसायी एवं कोलोनाईजर श्री महेश सोनी द्वारा, अन्य मुख्य वक्ता डॉ सुधीर सोनी को मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज जयपुर पश्चिम
के महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्षा श्रीमती मिथिलेश सुनालिया द्वारा तथा विशेष आमंत्रित
अतिथि डॉ चन्द्रशेखर शास्त्री को पूर्व संयुक्त रजिस्ट्रार सहकारिता विभाग श्रीमान्
रामजीलाल सोनी द्वारा भेंट किया गया। कार्यक्रम में मंच का सफल संचालन संस्था के मीडिया
सचिव सागर सोनी द्वारा किया गया। कार्यक्रम
में समाज का प्रबुद्ध वर्ग जिनमें महिलाएं एवं बच्चे भी शामिल थे, बडी संख्या में उपस्थित रहा। कार्यक्रम के सफल आयोजन में संस्था के सभी
सदस्य का भरपूर योगदान रहा।
उमेश कुमार सोनी
कार्यक्रम संयोजक
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