स्वर्णकार समाज-उत्थान संघ, जयपुर
''टूटते परिवार बिखरते सपने'' विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन
यह हम सभी जानते हैं कि हमारा देश कभी विश्व गुरू रहा है और पूरे विश्वास के साथ यह कहा जा रहा है कि हमारी वह स्थिति पुन: प्रकट होगी और हम फिर से सम्पूर्ण विश्व का प्रतिनिधित्व करेंगे। ऐसा इसलिए था क्योंकि हमारे देश की संस्कृति, संस्कार, परम्पराएं, ज्ञान विश्व में सर्वश्रेष्ठ रहे हैं। हमारे देश की एकता एवं अखण्डता में सबसे बड़ा योगदान हमारी पारिवारिक संगठित संरचना का रहा है, जिसे हम ''संयुक्त परिवार'' की संज्ञा देते हैं। जिसमें परिवार के सभी सदस्य हमेशा एक साथ रहते हुए एक-दूसरे के सुख-दुख के भागेदार बनते हैं और यही व्यवस्था हमारे परिवार को एक सूत्र में पिराये रखती है और आगे यह समाज की और फिर देश की एकता की महत्वपूर्ण कड़ी बनती है। किन्तु बड़े दुख की बात है कि विगत कुछ समय से यह पारिवारिक संरचना अपना मूल स्वरूप खो रही है, जिसका कारण संभवत: हमारे अंदर मूल्यों का विघटन होना है। परिणामस्वरूप ''संयुक्त परिवार'' का स्थान ''एकल परिवार'' ने ले लिया है और कहते हुए बड़ा दुख होता है कि बड़े-बड़े शहरों में ''एकल परिवार'' भी अपना अस्तित्व कायम रखने में असफल हो रही है और अब इंडीवीज्यूल्स फैमिली (परिवार का प्रत्येक सदस्य अलग-अलग हैं और मात्र एक व्यक्ति ही अपने आप में फैमिली बनकर रह गया है) का कॉन्सैप्ट जाने-अनजाने हम पर हावी होता जा रहा है। अब और कितना विघटन हमारी पारम्परिक पारिवारिक व सामाजिक संरचना का होगा ? कहना मुश्किल है और यह एक बहुत गंभीर समस्या है जिस पर चिन्तन कर सकारात्मक प्रयास करते हुए इसका समाधान खोजना अत्यन्त आवश्यक है।
इसी उद्देश्य को लेकर स्वर्णकार समाज-उत्थान संघ, जयपुर द्वारा सामाजिक चेतना हेतु निरन्तर किए जा रहे प्रयासों की कड़ी में उक्त गंभीर मुद्दे पर चिन्तन करने की दृष्टि से ''टूटते परिवार बिखरते सपने'' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन माह जनवरी, 2012 में प्रायोज्य है। इस कार्यक्रम के आयोजन से पूर्व इस विषय पर एक स्मारिका का प्रकाशन किया जायेगा, जिसका विमोचन कार्यक्रम के अन्तर्गत किया जायेगा। इस स्मारिका में समाज के विद्वतजनों से उक्त विषय पर लेख आमंत्रित किए जा रहे हैं। उक्त विषय पर आधारित उप-विषय निम्न प्रकार से हैं, जिनमें से आप अपनी स्वेच्छानुसार किसी भी एक विषय का चयन पर अपना लेख प्रेषित करने की कृपा करें-
1. संयुक्त परिवार : भूमिका, आवश्यकता, परम्परा, समकालीन प्रासंगिकता
2. एकल परिवार : प्रासंगिकता, अवमूल्यन, कठिनाईयाँ, सुझाव
3. बिखरते परिवार : क्या छोडें, क्या सहेजें
4. कैरियर और परिवार : कैसे हो सामंजस्य
5. समकालीन समाज : भविष्य, सपने व वास्तविकताएँ
6. अनुभव या संघर्ष : परिवार बनाम अकेलापन
7. कितने महत्वपूर्ण हैं रिश्ते ?
8. सामंजस्य, समाज, परिवार : कैसे हो संतुलन ?
9. परिवार और महिला : भूमिका व व्यवस्था
10. परिवार और सदस्य : सबकी अपनी बात
लेख के संबंध में निम्न बातों का ध्यान रखें-
1. लेख यदि हस्तलिखित हो तो A4 साइज के पांच पृष्ठों से अधिक न हो।
2. लेख यदि कम्प्यूटर द्वारा टाईप्ड हो तो A4 साइज के तीन पृष्ठों से अधिक न हो तथा जिसमें फोन्ट का आकार किसी भी लिपी में किन्तु 14 पाइंट से अधिक न हो।
3. लेखों को स्मारिका में स्थान देने अथवा नहीं देने का पूर्ण अधिकार सम्पादक मण्डल का रहेगा, इस विषय में किसी भी प्रकार के विवाद पर विचार नहीं किया जायेगा।
4. मूल लेख में संशोधन करने का अधिकार भी पूर्ण रूप से सम्पादक मण्डल को रहेगा, इस विषय में भी किसी प्रकार के विवाद पर विचार नहीं किया जायेगा।
5. लेख ऊपर दिये गये किसी एक उप-विषय पर ही आधारित हो तथा लेख लिखते समय कृपया विषय-वस्तु, आंकड़ों एवं तथ्यों की सत्यता की जांच कर लें, इस संबंध में सम्पूर्ण जिम्मेदारी लेखक की स्वयं की होगी।
6. लेख नीचे दिये पते अथवा ई-मेल पर 10 दिसम्बर, 2011 तक (एक पासपोर्ट साइज फोटो के साथ) अनिवार्य रूप से पहुंच जाने चाहिए, इसके पश्चात् प्राप्त लेखों पर विचार करना संभव नहीं होगा।
नोट : स्मारिका में प्रकाशन हेतु विज्ञापन भी आमंत्रित किए जा रहे हैं। स्मारिका में विज्ञापन प्रकाशन के संबंध में पूर्ण जानकारी के लिये कृपया सम्पर्क करें-
1. विरेन्द्र सोनी (उपाध्यक्ष), 9414272977, 2. योगेश सोनी (सचिव), 9314023251
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उमेश कुमार सोनी डॉ. सुधीर सोनी
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