Lecture in the Memory of Late Shri Shyam Lal Verma 'Dharambhushan'
स्व श्यामलाल वर्मा 'धर्मभूषण'
स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम सम्पन्
जयपुर 12 जनवरी। विवेकानंद जयन्ती के सुअवसर पर विद्याधर
नगर स्थित बियानी ग्रुप ऑफ कॉलेजेज के 'उत्सव' सभागार में स्वर्णकार समाज उत्थान समिति
द्वारा जयपुर से प्रथम दैनिक समाचारपत्र प्रकाशित करने वाले क्रांतिकारी पत्रकार और
स्वर्णकार समाज की महान् विभूिस्व श्री श्यामलाल
वर्मा 'धर्मभूषण' की स्मृति में व्याख्यान कार्यक्रम
आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में शरद कृषि (हिन्दी
संस्करण, पुणे) के सम्पादक एवं कृषि विपणन बोर्ड के पूर्व संयुक्त निदेशक सुविख्यात
पत्रकार डॉ महेन्द्र मधुप उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता मालवीय नेश्इंस्टीटयूट
ऑफ टैक्नोलॉजी, जयपुर से विभागाध्यक्ष मानविकी विभाग के पद से सेवानिवृत्त प्रोफेसर
रविशेखर वर्मा द्वारा की गई। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथियों में बियानी ग्रुप ऑफ कॉलेजेज
के निदेशक (अकादमिकडॉ संजय बियानी एवं प्रसिद्ध पत्रकार एवं लेखक डॉ विष्णु पंकज रहे।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में ग्रामभारती संस्थान के संस्थापक एवं संचालक श्रीमान्
भवानीशंकर 'कुसुम' तथा वानप्रस्थी सामाजिक कार्र्यकत्ता श्रीमानसत्यनारायण कुल्थिया
रहे।
कार्यक्रम का प्रारम्भ मंचासीन अतिथियों द्वारा
महाराजा अजमीढ़ एवं स्वामी विवेकानन्द जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन एवं माल्यार्पण
द्वारा किया गया। इसके पश्चात् कु क़शिश सोनी द्वारा अतिथियों का तिलक लगाकर स्वागकिया
गया एवं संस्था के सदस्य श्री विनोद सोनी एवं श्री संदीप झांगी द्वारा सभी अतिथियों
को स्मृति चिह्न एवं साहित्य भेंट किया गया। जोधपुर से पधारी श्रीमती विद्योत्तमा वर्मा
द्वारा स्वामी विवेकानंद पर लिखित पुस्तक को साहित्य के रूप में अतिथियों को भेंट किया
गया। मंचस्थ अतिथियों का परिचय कार्यक्रम संयोजक श्री उमेश कुमार सोनी द्वारा करवाया
गया। इसके पश्चात् संस्था के सदस्य श्री संदीप सोनी द्वारा संस्था के उद्देश्यों तथसंस्था
द्वारा अब तक सम्पन्न किए गए कार्यक्रमाें के संदर्भ में प्रजेन्टेशन प्रस्तुत की गई।
कार्यक्रम की रूपरेखा को संस्था की सदस्या श्रीमती सुरभि सोनी द्वारा अवगत कराया गया।
इसके पश्चात् मुख्य वक्ता श्री सत्यनारायण कुल्थिया द्वारा स्व श्री श्यामलाल वर्मा
'धर्मभूषण' के पारिवारिक एवं सामाजिक पक्षों पर प्रकाश डालते हुए बताया गया कि स्व
वर्मा जी का जन्म ज्येष्ठ कृष्णा 30 सोमवार संवत् 1954, 1 जून 1897 को अजीमगंज जिला
मुर्शीदाबाद (बंगाल) में स्व श्री मोतीलाल जी के घर पर हुआ। प्रारम्भ से ही इनकी लेखन,
धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में रुचि रही। इनका विवाह श्रीमती उमा देवी के साथ सम्पन्न
हुआ। इनके दो पुत्र तथा तीन पुत्रियाँ थी। इनके ज्येष्ठ पुत्र का स्वर्गवास हो चुका
है तथा ज्येष्ठ पुत्र का परिवार एवं कनिष्ठ पुत्र परिवार सहित जयपुर में निवास कर रहे
हैं। आप 1932 में महाराजा भवानीसिंह के जन्म के वर्षभर के समारोहों को देखने जयपुर
आए और यहीं बस गए।
आपने बताया कि 12 वर्ष की अल्पायु में ही पंडित सुरेन्द्रनाथ
बनर्जी के नेतृत्व में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पडे। 16 वर्ष की आयु में परिवारजन
के साथ मथुरा आकर कुन्दन जडाई का पैतृक कार्य सीखने लगे। स्व वर्मा जी हिन्दू महासभा
के सक्रिय सदस्य थे। इन्हाेंने महासभा की ओर से चुनाव भी लडा था। स्व वर्मा जी हिन्दी,
हिन्दू और हिन्दुस्तान के कट्टर समर्थक थे। 1962 में तात्कालीन केन्द्र सरकार द्वारा
लागू किए गए स्र्[1]ा नियंत्रण अधिनियम से
सम्पूर्ण देश का स्वर्णकारी कार्य करने वाला वर्ग बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ था। इन
विकट क्षणों में स्व वर्मा जी द्वारा अथक प्रयास किए गए और समाज को राहत दिलवाई। स्व
वर्मा जी द्वारा जयपुर में मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार सभा की स्थापना की गई थी और आप ही
के प्रयासों से जयपुर में स्थित स्वर्णकार कॉलोनी अपने अस्तित्व में आई। आप द्वारा
देशभर में स्वर्णकार समाज को संगठित करने के अनुपम प्रयास किए गए। आपने अनेकों राष्ट्रीय
स्वर्णकार महासम्मेलनों को संबोधितसंचालितआयोजित किया। आप द्वारा जब देखा गया कि स्वर्णकार
समाज का पुरुष वर्ग नशे की गिरफ्त में है, तब आपने नशाबंदी अभियान चलाया तथा सैंकड़ों
स्वर्णकार भाईयों को नशे की लत से दूर कर उन्हें भविष्य में ऐसा नहीं करने की शपथ दिलाई।
इसी प्रकार जब एक जाति विशेष के लोग स्वर्णकारों के साथ शूद्र जैसा व्यवहार करते थे
तब स्व वर्मा जी ने आचार्य चतुरसेन शास्त्री के साथ मिलकर उस जाति विशेष के लोगों को
शास्त्रार्थ के लिए ललकारा किन्तु उनमें से कोई भी शास्त्रार्थ करने की हिम्मत नहीं
कर सका। इसके उपरान्त सैकडों स्वर्णकार भाईयों को यज्ञोपवीत धारण करवाए गए। आपने निवेदन
किया कि स्वर्णकार कॉलोनी में किसी मार्ग अथवा उद्यान का नाम स्व बाबूजी के नाम पर
अवश्य रखा जाना चाहिए अथवा उनकी एक प्रतिमा बनाकर स्वर्णकार कॉलोनी में स्थापित की
जानी चाहिए।
इसके पश्चात् कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ संजय बियानी
द्वारा प्रसन्नता व्यक्त की गई कि स्वर्णकार समाज के इतनी महान् विभूति की स्मृति में
विचार-गोष्ठी का आयोजन करने हेतु बियानी कॉलेज को चुना गया और इनिमित्त स्वर्णकार समाज
के प्रबुद्धजन एवं मंचासीन महानुभावों का प्रवेश महाविद्यालय प्रांगण में हुआ। साथ
ही उन्होंने बड़े ही रोचक अंदाज में अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए बताया कि जीवन में
यदि किसी भी क्षेत्र में सफलता चाहिए तो एक बात ध्यान रखें। हम जो देते हैं वही लौटकर
पुन: हमारे पास आता है। अत: कोई भी कार्य करने से पहले विचार करें कि इसका परिणाम क्या
होगा ? साथ ही उन्होंने जीवन में 'थैंक्यू' और 'सॉरी' शब्दों का अपनाने पर विशेष बल
देते हुए अनेक उदाहरणों के माध्यम से अपना प्रभावी व्याख्यान दिया।
कार्यक्रम को आगे बढाते हुए अन्य मुख्य वक्ता श्री भवनीशंकर
'कुसुम' द्वारा स्व बाबूजी के के पत्रकारिता जीवन के विषय में प्रकाश डालते हुए बताया
कि बाबूजी को प्रारम्भ से ही पत्र-पत्रिकाओं में लेख भेजने में रुचि थीइनके लेख विभिन्न
सामाजिक पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होते थे। बाबूजी की मिर्जा इस्माइल (तात्कालीन
प्रधानमंत्री, जयपुर रियासत) से घनिष्ठता थी। एक बार मिर्जा ने बाबूजी से एक दैनिक
समाचारपत्र प्रकाशित करने का आग्रह किया और बाबूजी ने तुरन्त आग्रह स्वीकारते हुएमात्र
4-5 दिवस बाद ही 8 सितम्बर 1942 को जयपुर महाराजा के जन्मदिवस पर प्रथम समाचारपत्र
प्रकाशित कर दिया और यह प्रकाशन कुछ समय तक निरन्तर चलता रहा। चूंकि बाबूजी हिन्दी,
हिन्दू और हिन्दुस्तान के प्रबल समर्थक थे और मिर्जा द्वारा हिन्दी भाषा तथा हिन्दुओं
के धार्मिक स्थलों पर आघात करने की नीति के चलते बाबूजी ने मिर्जा की गलत नीतियों के
विषय में समाचार प्रकाशित करना प्रारम्भ कर दिए। परिणामस्वरूप मिर्जा द्वारा अखबार
पर प्रतिबंध लगा दिया गया और साथ ही बाबूजी को 6 माह तक कैद में 'सी' श्रेणी में रखा
गया। इसके पश्चात् भी जब 6 माह बाद बाबूजी बाहर आए तो उन्हें जयपुर रियासत से देश निकाला
दे दिया गया और बाबूजी कभी मथुरा तो कभी दिल्ली अत्यन्त परेशानियों का सामना करते हुए
जीवन व्यतीत करते रहे किन्तु मिर्जा के समक्ष झुके नहीं। एक बार जब मिर्जा ने बाबूजी
को पुन: बुलाने हेतु एक दूत भेजा तो बाबूजी ने कहा, 'कि जयपुर में या तो मिर्जा ही
रहेगा या फिर श्यामलाल रहेगा।' इससे उनके स्वाभिमानी व्यक्तित्व का पता चलता है। किन्तु
मिर्जा की जगह वीटीक़ृष्णामाचारी प्रधानमंत्री बनकर आए और उन्होंने 25 सितम्बर 1946
को जयपुर समाचार के प्रकाशन पर लगी हुई निषेधाज्ञा वापस ली और इसके पश्चात् उनके आग्रह
पर बाबूजी ने जयपुर समाचार को अपने गुरु के कहने पर राजस्थान समाचार के नाम से 28 अक्टूबर
को पुन: निकालना प्रारम्भ किया। बाद में 4 जनवरी 1948 को एक समाचारपत्र 'सिंहनाद' के
नाम से भी बाबूजी द्वारा प्रकाशित किया गया। समाचारपत्र प्रकाशन एवं वितरण से संबंधित
समस्त कार्य बाबूजी स्वयं ही किया करते थे। आपने बताया कि बाबूजी किसी भी राजनैतिक
पार्टी से प्रत्यक्ष रूप से जुडे हुए नहीं थे। किन्तु फिर भी सभी राजनैतिक दलों के
बड़े-बड़े पदाधिकारी, न्यायाधीश, प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी बाबूजी से मिलने घर
आया करते थे और बाबूजी सभी का सम्मान करते थे।
इसके पश्चात् डॉ विष्णु पंकज जो स्व वर्मा जी के अभिनन्दन
ग्रंथ के सम्पादक मण्डल के सदस्य थे। आपने बताया कि मैंने स्व वर्मा जी का साक्षात्कार
लिया था। जिसमें मैंने स्व वर्मा जी से पूछा कि आपने अपने समाचारपत्र का प्रकाशन तो
सत्ता के सहयोग से किया। किन्तु इसमें समाचार सदैव जनता के प्रकाशित किए, ऐसा आपने
समाचारपत्र निकालने के पश्चात् तय किया अथवा प्रारम्भ से ही आपकी यही विचारधारा रही।
तब स्व वर्मा जी ने मुझे बताया कि मेरी प्रारम्भ से ही सही विचारधारा थी कि मैं समाचारपत्र
किसी के भी सहयोग से प्रकाशित करूं, किन्तु समाचार जनता के हित में ही प्रकाशित करूंगा।
भले ही मुझे सत्ता का सहयोग मिले अथवा नहीं, चाहे मुझे कितनी भी परेशानियाें का सामना
ही क्यूं ना करना पडें। डॉ पंकज द्वारा स्व वर्मा जी की स्मृति में प्रतिवर्ष पत्रकारिता
पुरस्कार दिए जाने का आह्वान स्वर्णकार समाज से किया। इस पर गुरू गोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में फैकल्टी
ऑफ बेसिक एण्ड एप्लाईड साइंसेज संकाय के अधिष्ठाता प्रो वी क़े वर्मा द्वारा स्व वर्मा
की स्मृति में प्रतिवर्ष ग्यारह हजार रुपये के पत्रकारिता पुरस्कार की घोषणा की गई।
इसके बाद विवेकानन्द जी के सार्धशती समारोह के समापन
दिवस एवं स्वामी जी के जन्म दिवस पर कु सुरभि द्वारा विवेकानन्द जी के जीवन पर आधारित
कुछ प्रेरक प्रसंग सुनाए गए। जिसकी सभी द्वारा सराहना की गई।
कार्यक्रम में स्व बाबूजी के जयपुर में निवासरत अधिकांश
परिवारजन पधारे थे। स्व बाबूजी के पौत्र श्री हरीश वर्मा को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि
द्वारा शॉल ओढाया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष द्वारा इन्हें अभिवन्दन-पत्र किया गया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथियों द्वारा इन्हें स्मृति चिह्न भेंट किया गया तथा मुख्य
वक्ताओं द्वारा पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत एवं अभिनन्दन किया गया। इस समय सभागार में
उपस्थित सभी समाजबंधु एवं परिवारजभाव विभोर हुए। साथ ही मंच संचालिका द्वारा अभिवन्दन-पत्र
को पढ़कर सुनाया गया।
इसके पश्चात् कार्यक्रम के मख्ुय अतिथि डॉ महेन्द्र
मधुप ने अपने उद्बोधन में बताया कि उनका परिचय स्व वर्मा से बहुत बाद में हुआ। जब वे
अपना पीएचड़ी शोध कार्य पूर्ण कर रहे थे, जिसका विषय ''जयपुर की पत्र-पत्रिकाओकी स्वाधीनता
आंदोलन में भूमिका'' था। इस संदर्भ में उनका स्व वर्मा जी से मिलना हुआ था। उसके बाद
तो वे स्व वर्मा से बहुत प्रभावित हुए तथा इसके पश्चात् उनका स्व वर्मा जी से निरन्तर
सम्पर्क बना रहा। आपने स्व वर्मा जी के विषय में बताया कि वे बहुत ही निर्भीक पत्रकार
थे जिन्होंने कभी हालात से समझौता नहीं किया और न ही किसी के सामने झुके। आपने बताया
कि किस प्रकार जनसम्पर्क विभाग ने त्रुटिवश स्व वर्मा द्वारा प्रकाशित किए जा रहे
'जयपुर समाचार' समाचारपत्र का सम्पादक किसी और को दर्शाया गया। जिससे स्व वर्मा जी
बहुत आहत हुए और उन्होंने डॉ महेन्द्र मधुप से इस त्रुटि को संशोधित किए जाने का आग्रह
किया। इस संदर्भ में डॉ महेन्द्र मधुप द्वारा शोध किया गया तथा यह निष्कर्ष निकाला
गया कि पूर्व में प्रकाशित 'श्री मान सूर्योदय' समाचारपत्र के निचली पंक्ति में 'जयपुर
समाचार' उधदृत था। जन सम्पर्क विभाग द्वारा समाचारपत्र का नाम ही 'जयपुर समाचार' समझे
जाने पर यह भूल हुई जिसका सुधार बाद में कर दिया गया। साथ ही
डॉ मधुप ने स्व वर्मा के संघर्षमयी पत्रकारिता जीवन को वर्तमान में पत्रकार बंधुओं के लिए आदर्श रूप बताते हुए उनकी विशेषताओं को अपने पत्रकारिता पेशे में ग्रहण करने की सलाह देते हुए स्व श्यामलाल वर्मा की स्मृति में सरकार द्वारा डाक टिकट जारी करवाने हेतु प्रयास करने का आह्वान किया।
कार्यक्रम में अध्यक्षता
कर रहे डॉ. रविशेखर वर्मा ने भी स्व. वर्मा के संदर्भ में उनके अनुभव साझा किए। उन्होंने
बताया कि स्व. वर्मा से उनके पारिवारिक संबंध थे। स्व. वर्मा की जीवन शैली और कार्यशैली
से वे बहुत प्रभावित थे।
कार्यक्रम के अन्त
में संस्था के अध्यक्ष श्री गजेन्द्र सोनी द्वारा कार्यक्रम में पधारे सभी अतिथियों
एवं समाजबंधुओं का धन्यवाद ज्ञापित किसाथ ही
पूर्व में स्व वर्मा पर प्रकाशित अभिनन्दन ग्रन्थ को संस्था द्वारा समाज बंधुओं के
सहयोग से पुन: स्मृति ग्रन्थ के रूप में प्रकाशित करने की घोषणा भी की गई। इस संदर्भ
में उन्होंने समाजबंधुओं से सहयोग की अपेक्षा की जिस पर जोधपुर से पधारे श्रीमती विद्योत्तमा
जी वर्मा एवं श्री ऋद्धिकरण जी सोनी ने इस ग्रन्थ के पुन: प्रकाशन के संदर्भ में आर्थिक
सहयोग करने की इच्छा व्यक्त की।
कार्यक्रम में पधारे सभी महानुभावों को श्री सागरमल
सोनी (नारनौली), शांति ज्वैलर्स, वैशाली नगर, जयपुर द्वारा महाराजा अजमीढ़ का चित्र
वितरित किया गया।
कार्यक्रम में बियानी कॉलेज के पत्रकारिता विषय में
अध्ययनरत् विद्यार्थी एवं समाज का प्रबुद्ध वर्ग बड़ी संख्या में उपस्थित रहा। अन्त
में राष्ट्रगान के पश्चात् पधारे हुए समाजबंधुओं ने अल्पाहार ग्रहण किया और कार्यक्रम
सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।
(सागर सोनी)
मीडिया सचिव
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