Monday, October 10, 2011

Significance of Maharaja Ajmeed Jayanti Celebration

सर्वप्रथम समस्त स्वर्णकार बंधुओ को महाराजा अजमीड़ जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं. 
जैसा की आप सभी जानते हैं की दिनांक ११.१०.११ को महाराजा अजमीड़ की जयंती है और बड़े हर्ष का विषय है की संपूर्ण भारत वर्ष में विभिन्न संगठनों द्वारा यह जयंती बड़े हर्शोल्लाश के साथ मनाई जाएगी और क्यु न मनाई जाये आखिर महाराजा अजमीड़ मेड क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदिपुरुष हैं और हमें गर्व है की महाराजा अजमीड़ जैसे महाप्रतापी राजा के हम वंशज हैं.  लेकिन विचारणीय बिंदु यह है की क्या हम सही मायनों में अजमीड़ जयंती मानते आ रहे हैं और इस बार भी मना पाएंगे. किसी भी कार्य को करने के मायने प्रत्येक व्यक्ति के विभिन्न हो सकते हैं. अजमीड़ जयंती को मनाने के मायने जो में समझता हूँ उसे आप सभी के साथ बाँटना चाहता हूँ इसलिए ये ब्लॉग लिख रहा हूँ. 
हम सभी कल देखेंगे की बड़े बड़े संगठनों द्वारा अजमीड़ जयंती मनाई जाएगी और हजारो की संख्या में स्वर्णकार बंधू एकत्रित होंगे ,कलश यात्राएं निकाली जाएँगी, मंचो से बड़े बड़े उद्बोधन सुनने को मिलेंगे, भामाशाहो द्वारा बड़ी बड़ी घोषणाएं की जाएँगी, प्रतिभाओं का सम्मान किया जायेगा, रक्तदान शिविरों का आयोजन किया जायेगा और अंत में भोजन प्रसादी के साथ कार्यक्रम समाप्त हो जायेगा. आप क्या सोचते हैं क्या यही मायने हैं अजमीड़ जयंती मानाने के. में शायद कुछ और सोचता हूँ. जब बड़े बड़े बैनरों पर लिखा जायेगा श्री मेध क्षत्रिय स्वर्णकार  समाज ......... द्वारा आयोजित अजमीड़ जयंती समारोह........ तो यह सोचकर मेरे मन में पहेले से ही कुछ प्रश्न उठ रहे हैं. ऊपर लिखे वाक्य में चार बड़े ही महत्पूर्ण प्रश्न छिपे हैं, जो की उन चार स्तम्भो  की भांति है  जो हमारे स्वर्णकार समाज की इमारत को सहेजे हुए हैं. यदि इन चार प्रश्नों के उत्तर विभिन्न संगठन अजमीड़ जयंती के माध्यम से आम जन तक पंहुचा सके तो अजमीड़ जयंती के आयोजन की सार्थकता है अन्यथा ये सिर्फ एक निरूध्येश्य कार्यक्रम ही साबित होंगे. ये चार प्रश्न हैं :
१. महाराजा अजमीड़ कोन थे
२. हम मेढ़ कैसे कहलाये 
३. हम क्षत्रिय कैसे हुए 
४. स्वर्नकारी कार्य करने वाली तो बहुत सी जातियां हैं किन्तु मेढ़ जाती ही स्वयं को शुद्ध स्वर्णकार क्यूँ मानती है अर्थात हम स्वर्णकार कैसे हुए

बड़े दुःख की बात है हर वर्ष अजमीड़ जयंती का आयोजन करने वाली अधिकांश संस्थाओं के पदाधिकारियों तक को उक्त सवालो के जवाब पता नहीं हैं तो क्या वे इनका जवाब आम व्यक्ति तक पंहुचा पाएंगे, क्या उनका कर्त्तव्य नहीं है की वे जिस समाज की सेवा का बीड़ा अपने कंधो पे उठाये हैं कम से कम अपने समाज के इतिहास की तो जानकारी कर ले और समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक इस जानकारी को सही रूप में पहुचाएं.  उन्हें बताएं की महाराजा अजमीड़ महाप्रतापी राजा हुए जिन्होंने हस्तिनापुर पर राज्य किया, और मेढ़ जाती महाराजा अजमीड़ की वंशज है , वह जाती जिसने लम्बे समय तक इर्रान में मीडिया पर शाशन किया और निरंतर युद्ध करने के कारन  हम क्षत्रिय कहलाये, चूँकि सदेव तो युद्ध नहीं होते हैं अत मेढ़ क्षत्रिय जाती स्वर्नकारी कार्य में भी सिद्धहस्थ थी, हम विश्व के सर्वश्रेठ कलाकार हैं  आदि आदि अनेकों बातें  जो हमें गोरवान्वित करती हैं और सुशोबित करती हैं, एक स्वर्णकार के रूप में. 
जरा सोचिये आज कितने समाज बंधू महाराजा अजमीड़ के विषय में जानकारी रखते हैं, कितने समाज बंधुओ ने महाराजा अजमीड़ का चित्र अपने घरो या व्यवसाय स्थालो पर लगाया हुआ है, आप मालूम  करने का प्रयास कीजीए या स्वयं से ही पूछ लीजीये, बड़े आश्चर्यजनक परिणाम सामने आयेंगे और बड़े दुखद भी. हम जो भी कार्य करते हैं जब तक उस कार्य के उद्देश्य उसकी संकल्पना के साथ मेल नहीं खायेंगे तब तक उस कार्य की सफलता सुनिश्चित नहीं की जा सकती है. 
कारण अनेक हैं जिनकी वजह से हमारे समाज का असली और व्यापक चेहरा कही बहुत पीछे छूट गया है और समाज के सभी सद्श्यों को उनकी पहचान और सरोकारों से अवगत कराना बहुत आवश्यक है. ताकि वे पहचान सके अपने वजूद को. इसलिए मेरा समाज के सभी बंधुओ से निवेदन है , विशेषकर उनसे जिन्होंने सामाजिक संगठनों की स्थापना कर समाज सेवा का बीडा उठाया है  की  यदि समाज को आगे बढाना है तो पहेले आधार मजबूत कीजीये. तो समाज बंधू स्वयं आगे आयेंगे आपका इस सद्कर्म में साथ देने के लिए.
जय अजमीड़ जय भारत !

उमेश कुमार सोनी 
संयुक्त सचिव, स्वर्णकार समाज उत्थान संघ 
9314405401